नई दिल्ली: ‘ये सर्द रात, ये आवारगी, ये नींद का बोझ…हम अपने शहर में होते तो घर चले जाते’, यह नज्म उस शख्सियत के स्ट्रगल को बखूबी बयां करती है, जो हिंदी सिनेमा में कई दशकों से जगमगा रहा है. उसने अपनी काबिलियत से सिनेमा को नया रूप दिया. हालांकि, उन्हे…
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